वाराणसी: गंगा की पुण्यभूमि पर बहती असि नदी अब अपने मूल स्वरूप में लौटने की तैयारी में है। वर्षों से उपेक्षित इस नदी को फिर से जीवंत करने की जो पहल शुरू हुई है, वह बनारस के पर्यावरण और सांस्कृतिक धरोहर को नया जीवन देने की ऐतिहासिक मुहिम बनती जा रही है।
वीडीए (वाराणसी विकास प्राधिकरण) और आईआईटी बीएचयू की संयुक्त योजना के तहत असि नदी के चैनलाइजेशन यानी प्रवाह को सुचारू और प्राकृतिक स्वरूप में लाने का काम जोरों पर है। यह सिर्फ एक नदी नहीं, बल्कि बनारस की आत्मा का हिस्सा है, जिसे अब उसकी खोई हुई पहचान वापस दिलाने की कोशिश की जा रही है।
अतिक्रमण पर चलेगा बुलडोजर, सर्वे से मच रही हलचल
असि नदी के आसपास की जमीन पर अवैध कब्जे करने वालों की अब खैर नहीं। तहसील और नगर निगम के रिकॉर्ड खंगाले जा रहे हैं। एक-एक दस्तावेज, एक-एक इंच जमीन की माप हो रही है। सर्वे की टीम इलाके का दौरा कर रही है, ड्रोन कैमरे से नजर रखी जा रही है, और नक्शे से लेकर जमीन की राजस्व रिकॉर्ड तक की गहन पड़ताल हो रही है।
प्राधिकरण पहले ही ऐलान कर चुका है कि अतिक्रमण किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। जिन लोगों ने नदी की ज़मीन पर कब्जा कर निर्माण किए हैं, उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई तय है।
इन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा कब्जे
जांच के दायरे में फिलहाल कर्दमेश्वर तालाब, कंदवा पोखरी और कर्माजीतपुर तालाब प्रमुख रूप से शामिल हैं – ये वो इलाके हैं जहां पर नदी के प्रवाह क्षेत्र में अतिक्रमण कर निर्माण किए गए हैं। नदी की चौड़ाई को संकुचित कर दिया गया है, जिससे जल प्रवाह बाधित हुआ है।
अब नदी की राजस्व अभिलेखों में दर्ज चौड़ाई और वर्तमान वास्तविक चौड़ाई का मिलान किया जा रहा है। जहां भी गड़बड़ी मिलेगी, वहां बुलडोजर चलेगा – अधिकारियों की सख्त चेतावनी है।
लाल निशान, सूचना बोर्ड – अब कोई बहाना नहीं चलेगा
असि नदी के प्रवाह क्षेत्र की सीमा को चिह्नित करने का काम भी शुरू हो गया है। प्रमुख स्थलों पर सूचना पट्ट और चेतावनी बोर्ड लगाए जा रहे हैं। साथ ही, अवैध निर्माण रोकने के लिए लाल निशान भी लगाए जा रहे हैं, जो साफ संकेत देता है कि यहां आगे बढ़ना मना है।
यह कदम आमजन को सतर्क करने के साथ ही ये भी बताता है कि प्रशासन अब एक्शन मोड में है। नदी की जमीन पर कोई भी निर्माण अब सीधा अपराध माना जाएगा।
संरक्षण की दिशा में उठाया गया बड़ा कदम
यह पूरी मुहिम केवल असि नदी को अतिक्रमण से मुक्त कराने की नहीं, बल्कि उसे संरक्षित और संजीवित करने की है। बनारस की जनता के लिए यह एक उम्मीद की किरण है कि गंगा की सहायक नदी फिर से कलकल बहने लगेगी, आसपास का पारिस्थितिकी तंत्र फिर से फलेगा-फूलेगा।
जनभागीदारी होगी सबसे बड़ी ताकत
अधिकारियों का मानना है कि इस ऐतिहासिक कार्य में जनता की भागीदारी ही सबसे बड़ा सहारा बनेगी। स्थानीय लोगों को जागरूक किया जा रहा है कि वे न सिर्फ अतिक्रमण से दूर रहें, बल्कि नदी के संरक्षण में प्रशासन का सहयोग करें।
यूपी खबर के लिए यह केवल एक खबर नहीं, बल्कि भविष्य के लिए उम्मीद की वह कहानी है, जो बनारस को उसकी सांस्कृतिक और पर्यावरणीय गरिमा वापस दिला सकती है। असि नदी की धारा अगर फिर से बह निकली, तो यह केवल पानी नहीं, बल्कि विरासत का प्रवाह होगा।
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