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वाराणसी: रामनगर थाने में बंदरों का आतंक, भगाने के लिए गुलेल लेकर आरक्षी तैनात

वाराणसी: रामनगर थाने में बंदरों का आतंक, भगाने के लिए गुलेल लेकर आरक्षी तैनात

रामनगर थाने में बंदरों के आतंक से निर्माण कार्य बाधित, प्लास्टर उखाड़ने की घटनाओं को रोकने के लिए एक सिपाही को गुलेल के साथ ड्यूटी पर तैनात किया गया है, वन विभाग से मदद की गुहार।

वाराणसी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में रामनगर थाने से इन दिनों एक बेहद अजीब लेकिन पूरी तरह सच्ची कहानी सामने आ रही है, जिसने पूरे नगर में चर्चा का माहौल बना दिया है। आमतौर पर पुलिस को अपराधियों और असामाजिक तत्वों से निपटने के लिए जाना जाता है, लेकिन रामनगर थाना इस समय एक अनोखी समस्या से जूझ रहा है, बंदरों का आतंक। हालात ऐसे हो गए हैं कि थाने में बाकायदा एक आरक्षी को सिर्फ बंदरों को भगाने के लिए तैनात किया गया है, और उसके पास हथियार के तौर पर केवल एक गुलेल है।

मामला तब शुरू हुआ जब रामनगर थाने के मुख्य द्वार को सड़क चौड़ीकरण कार्य के तहत तोड़ दिया गया। नए गेट के निर्माण के दौरान प्लास्टरिंग और अन्य मरम्मत का काम लगातार चल रहा है। लेकिन जैसे ही यह कार्य शुरू हुआ, बंदरों के झुंड ने इस पर व्यवस्थित ढंग से हमला बोल दिया। मजदूरों द्वारा जैसे ही प्लास्टर किया जाता, वैसे ही बंदरों की टोली वहां पहुँच जाती और दीवारों को खरोंचकर, प्लास्टर को उखाड़कर सारा काम बिगाड़ देती। यह सिलसिला कई दिनों तक लगातार चला, जिससे निर्माण कार्य बार-बार बाधित होता रहा।

स्थिति की गंभीरता को देखते हुए थाना प्रभारी राजू सिंह ने कई बार वन विभाग को सूचित किया, लेकिन आश्वासनों के सिवा कुछ भी हाथ नहीं लगा। थाना प्रभारी ने स्पष्ट रूप से बताया, "हमने कई बार वन विभाग को इस बारे में सूचित किया कि बंदरों का आतंक थाने में बेकाबू हो गया है, लेकिन उनकी ओर से अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।" जब उम्मीद की सभी किरणें बुझने लगीं, तो पुलिस ने खुद ही समाधान निकालने का निर्णय लिया और एक आरक्षी को विशेष रूप से गुलेल के साथ बंदर भगाने की ड्यूटी सौंप दी गई।

अब रामनगर थाना एक अजीबोगरीब दृश्य का गवाह बन चुका है। जहां एक पुलिस आरक्षी, बंदूक या डंडा नहीं, बल्कि एक गुलेल लिए थाने के बाहर बंदरों पर नजर रखता है। यह दृश्य आम लोगों के लिए मनोरंजन का साधन बन गया है। स्थानीय दुकानदारों और राहगीरों का कहना है कि उन्होंने पहले कभी नहीं देखा कि कोई पुलिसवाला इस तरह खुलेआम बंदरों से मोर्चा ले रहा हो। एक दुकानदार ने हँसते हुए कहा, लगता है अब थाने में अपराधियों से ज्यादा खतरा बंदरों से हो गया है।

हालांकि यह दृश्य कुछ लोगों को मनोरंजक लग सकता है, लेकिन इसके पीछे की हकीकत बेहद चिंताजनक है। यह न सिर्फ वन विभाग की निष्क्रियता को उजागर करता है, बल्कि प्रशासनिक तालमेल की कमी और संवेदनहीनता की ओर भी इशारा करता है। रामनगर थाने की यह स्थिति पूरे नगर के लिए एक प्रतीक बन चुकी है, क्योंकि बंदरों का आतंक केवल थाना परिसर तक सीमित नहीं है। नगर के अन्य हिस्सों में भी लोगों को रोजाना बंदरों के उत्पात का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें कई लोग घायल भी हुए हैं, यहां तक कि जान भी जा चुकी है। और कई दुकानों में नुकसान भी हुआ है।

इसके बावजूद वन विभाग और जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारी आज भी खामोश हैं, जैसे कि उन्हें इस समस्या का कोई एहसास ही नहीं। नगरवासियों में रोष बढ़ता जा रहा है और हर गली, हर नुक्कड़ पर एक ही सवाल गूंज रहा है—आखिर कब जागेगा वन विभाग?

रामनगर की यह अनोखी घटना अब पूरे सिस्टम के लिए एक कटाक्ष बन चुकी है। पुलिस को अपराधियों से लड़ने के बजाय अब जानवरों से भी निपटना पड़ रहा है। प्रशासन की निष्क्रियता के चलते अब पुलिस को "वन सेवा" का भी भार अपने कंधों पर उठाना पड़ रहा है।

रामनगर की जनता और "यूपी खबर" की यह विशेष रिपोर्ट आज सिर्फ एक हास्यप्रद समाचार नहीं है, बल्कि यह उस सच्चाई को सामने ला रही है जिसे लंबे समय से नजरअंदाज किया जा रहा है। यदि समय रहते कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो यह समस्या और भी भयावह रूप ले सकती है। ऐसे में प्रशासन को तुरंत हरकत में आना चाहिए, ताकि रामनगर के नागरिकों को इस बंदर आतंक से राहत मिल सके और पुलिस को अपने असल काम पर ध्यान देने का अवसर मिले।

Published By : SANDEEP KR SRIVASTAVA Updated : Mon, 14 Apr 2025 10:32 PM (IST)
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Tags: varanasi news bandar ka atank ramnagar thana

Category: breaking news uttar pradesh news

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