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वाराणसी: अवसादग्रस्त युवक ने नीम के पेड़ पर लटकर की आत्महत्या, घर वालों से नहीं था संपर्क

वाराणसी: अवसादग्रस्त युवक ने नीम के पेड़ पर लटकर की आत्महत्या, घर वालों से नहीं था संपर्क

महाराष्ट्र निवासी 44 वर्षीय मुरेश्वर, जो महाकुंभ से लौटकर काशी में दिहाड़ी मजदूरी कर रहा था, ने नगर निगम कार्यालय के पास नीम के पेड़ पर आत्महत्या कर ली, जिससे शहर में शोक की लहर दौड़ गई।

वाराणसी: नगर की प्राचीन गलियों और आध्यात्मिक आभा के बीच मंगलवार को एक ऐसी घटना घटी, जिसने हर संवेदनशील हृदय को झकझोर दिया। नगर निगम कार्यालय के पास एक नीम के पेड़ पर 44 वर्षीय युवक ने जीवन की डोर खुद अपने हाथों से समाप्त कर दी। यह कोई साधारण आत्महत्या नहीं थी, यह एक बिखरे हुए जीवन की करुण पुकार थी — एक गूंगी चीख जो बनारस की सड़कों पर गूंज उठी।

मृतक की पहचान महाराष्ट्र निवासी मुरेश्वर के रूप में हुई है, जो हाल ही में महाकुंभ से लौटते समय भटककर काशी पहुंचा था। यहां की धरती ने उसे शरण तो दी, पर शायद मन को सुकून नहीं मिला। अपनों से बिछड़ने का दर्द, अनजान शहर में संघर्ष, और गुमनाम सी ज़िंदगी — ये सब मिलकर उसे उस अंधेरे रास्ते की ओर ले गए जहाँ से कोई लौट कर नहीं आता।

अवसाद की परछाइयों में घिरा मुरेश्वर:

काशी आने के बाद मुरेश्वर दिहाड़ी मजदूरी कर अपना पेट पाल रहा था। घर लौटने की तमन्ना और परिवार से बिछड़ने की पीड़ा उसे अंदर ही अंदर तोड़ रही थी। आसपास के लोगों के मुताबिक, वह अक्सर चुपचाप बैठा रहता, आंखों में खोएपन की गहराई और चेहरे पर निराशा की झलक साफ दिखाई देती थी। आत्महत्या से पहले भी वह एकटक नीम के पेड़ के नीचे बैठा रहा, मानो ज़िंदगी से आखिरी बार बातें कर रहा हो।

दृश्य जिसने बनारस की रूह को हिला दिया:

सुबह जैसे ही लोगों ने नीम के पेड़ पर लटकता शव देखा, पूरे इलाके में अफरा-तफरी मच गई। हर कोई स्तब्ध था — एक जीवंत आत्मा की यह शांत लेकिन त्रासद विदाई किसी को समझ नहीं आई। सूचना मिलते ही सिगरा थाना पुलिस मौके पर पहुंची, नगर निगम का वाहन बुलवाया गया और शव को उतारकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया।

परिवार से बिछड़ने की पीड़ा बनी आत्मघात की वजह:

पुलिस जांच में सामने आया कि मुरेश्वर लंबे समय से अपने घर नहीं जा पाया था। परिवार से संपर्क टूट चुका था, और वह खुद को बिल्कुल अकेला महसूस कर रहा था। यह अकेलापन ही शायद उसका सबसे बड़ा शत्रु बन गया।

काशी की गलियों में गूंजता एक सवाल: क्या हम संवेदनहीन हो चले हैं:

मुरेश्वर की मौत सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है। यह उस सामाजिक विफलता का प्रमाण है, जिसमें एक इंसान भटक जाता है, टूट जाता है और चुपचाप मर जाता है — बिना किसी शोर के, बिना किसी सहारे के। क्या हमने ऐसे लोगों के लिए कोई जगह छोड़ी है, जो सहायता नहीं मांग सकते लेकिन जिनकी आंखें मदद के लिए पुकारती हैं।

काशी, जो हमेशा से मोक्ष की नगरी रही है, आज एक ऐसी आत्मा की गवाही दे रही है जो मोक्ष नहीं, सिर्फ सहानुभूति चाहती थी।

यूपी खबर की अपील:

अगर आपके आसपास कोई अकेला, उदास, या टूटता हुआ नजर आए, एक कदम आगे बढ़ाइए। एक सहारा, एक बातचीत, एक मदद का हाथ — शायद किसी को फिर से जीने की वजह दे दे।

मुरेश्वर चला गया, लेकिन उसकी कहानी हर आंख में सवाल छोड़ गई है। आइए, हम मिलकर संवेदनाओं को फिर से जिंदा करें, ताकि अगली बार कोई और मुरेश्वर यूं सरेराह फांसी पर न झूले।

यह खबर सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि समाज की आत्मा को झकझोरने वाली पुकार है। शेयर कीजिए, सोचिए — और बदलाव की ओर एक कदम बढ़ाइए।

Published By : SANDEEP KR SRIVASTAVA Updated : Tue, 08 Apr 2025 02:12 PM (IST)
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Tags: varanasi suicide maharashtra news up crime news

Category: crime uttar pradesh news

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