Tue, 11 Mar 2025 23:00:37 - By : SANDEEP KR SRIVASTAVA
काठमांडू/गोरखपुर: नेपाल में 9 मार्च को पूर्व राजा ज्ञानेंद्र वीर विक्रम शाह के स्वागत में आयोजित राजशाही समर्थक रैली के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पोस्टर लहराने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। इस घटना ने नेपाल में राजनीतिक हलचल बढ़ा दी है, और स्थानीय प्रशासन ने इसे गंभीरता से लिया है।
नेपाल में 2008 में लोकतंत्र की स्थापना के बाद राजशाही को समाप्त कर दिया गया था, लेकिन अब एक वर्ग फिर से राजशाही की बहाली की मांग कर रहा है। इसी क्रम में पूर्व राजा ज्ञानेंद्र के स्वागत में काठमांडू में त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के बाहर एक विशाल रैली आयोजित की गई, जिसमें हजारों लोग शामिल हुए। इस दौरान कई लोगों ने नेपाल में हिंदू राष्ट्र की बहाली की मांग करते हुए तख्तियां और झंडे लहराए।
इसी रैली के दौरान सबसे अधिक ध्यान तब आकर्षित हुआ, जब एक व्यक्ति ने पूर्व राजा ज्ञानेंद्र के साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का पोस्टर लहराया। इस घटना के बाद नेपाल में राजनीतिक विवाद शुरू हो गया।
नेपाल सरकार और सत्तारूढ़ दलों ने इस घटना को राजनीतिक हस्तक्षेप के रूप में देखा है। नेपाल में किसी बाहरी देश के राजनेता की तस्वीर को किसी राजनीतिक आंदोलन से जोड़ना वहां के कानूनों और कूटनीति के लिहाज से संवेदनशील माना जाता है। नेपाल सरकार के कई अधिकारियों ने इस घटना को लेकर नाराजगी जताई और इस पर जांच शुरू कर दी।
रैली में योगी आदित्यनाथ का पोस्टर लहराने वाले व्यक्ति की पहचान प्रदीप विक्रम राणा के रूप में हुई है, जो नेपाल में राजशाही और हिंदू राष्ट्र के समर्थन में लंबे समय से सक्रिय हैं। रैली के बाद नेपाल पुलिस ने उनके खिलाफ जांच शुरू कर दी, जिसके चलते उन्हें नेपाल छोड़कर गोरखपुर आना पड़ा।
गोरखपुर पहुंचने के बाद प्रदीप विक्रम राणा ने कहा कि, मैं नेपाल की मौजूदा सरकार के रहते वापस नहीं जा सकता। जब सरकार बदलेगी, तब मैं लौटूंगा। इसमें योगी आदित्यनाथ का कोई हाथ नहीं है। मैंने अपने विचारों के आधार पर यह किया है।
प्रदीप ने यह भी दावा किया कि उन्हें नेपाल में गलत तरीके से फंसाने की कोशिश की जा रही है। उनका कहना है कि उन पर पैसे लेकर पोस्टर लहराने का आरोप लगाया गया है, जो पूरी तरह से गलत है। उन्होंने कहा कि उनके पास आर्थिक रूप से कोई कमी नहीं है और वह किसी से पैसे लेकर ऐसा नहीं कर सकते।
नेपाल सरकार ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुए इसकी जांच शुरू कर दी है। नेपाल की सत्ता में मौजूद दलों ने इसे भारत द्वारा नेपाल की राजनीति में हस्तक्षेप करने की कोशिश बताया है। हालाँकि, भारत सरकार या उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।
नेपाल और भारत के बीच ऐतिहासिक रूप से करीबी सांस्कृतिक और धार्मिक संबंध रहे हैं, लेकिन हाल के वर्षों में कुछ राजनीतिक मुद्दों पर तनाव भी देखा गया है। नेपाल में इस तरह की घटनाओं को लेकर राजनीतिक दलों की अलग-अलग राय हो सकती है, लेकिन यह स्पष्ट है कि इससे दोनों देशों के रिश्तों पर असर पड़ सकता है।
नेपाल, जो 2008 तक दुनिया का एकमात्र हिंदू राष्ट्र था, अब एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। हालांकि, नेपाल की बड़ी आबादी हिंदू है और कई लोग अब भी हिंदू राष्ट्र की बहाली की मांग कर रहे हैं। नेपाल में पिछले 16 वर्षों में 13 बार सरकारें बदली हैं, जिससे राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है।
नेपाल में योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता किसी से छिपी नहीं है। नेपाली हिंदू समुदाय के एक बड़े वर्ग में उन्हें हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। यही वजह है कि उनके पोस्टर को लेकर नेपाल में इतना बड़ा विवाद खड़ा हो गया।
नेपाल में इस विवाद के बाद सरकार की कार्रवाई पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं। दूसरी ओर, नेपाल में राजशाही समर्थकों का आंदोलन भी तेज होता दिख रहा है। प्रदीप विक्रम राणा जैसे कार्यकर्ताओं की भूमिका भी इस मामले में महत्वपूर्ण हो सकती है।
नेपाल और भारत के बीच लंबे समय से घनिष्ठ संबंध रहे हैं, लेकिन इस तरह की घटनाएँ इन रिश्तों को प्रभावित कर सकती हैं। नेपाल सरकार की अगली कार्रवाई यह तय करेगी कि यह विवाद कितना आगे बढ़ता है और इसका नेपाल की आंतरिक राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है।